सातारा की हमारी सड़क यात्रा बहुत ही रोमांचक और संतोषजनक  साबित हो रही थी क्योंकि हमने उन सभी स्थानों को देख लिया था जिन्हें हम यात्रा के पहले दिन के  लिए लक्षित कर रहे थे। यदि आप मेरे ब्लॉगों के माध्यम से हमारी यात्रा का अनुसरण कर रहे हैं, तो आप यह जान रहे होंगे कि हम पहले बारामोतिची विहिर के नाम से जानने वाली  प्राचीन बावड़ी देखने गए थे और उसके बाद हमने किकली गांव के श्री भैरवनाथजी  के एक सुंदर, शांत मंदिर का दौरा किया। यदि आपने हमारी इन यात्राओं को नहीं पड़ा तो इन्हे पड़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

श्री भैरवनाथ मंदिर (click here to read)

 

श्री भैरवनाथ मंदिर

 

श्री भैरवनाथ मंदिर से आते समय हमें बहुत भूख लगी थी, इसलिए सतारा शहर में प्रवेश करने से ठीक पहले हमने हाइवे के किनारे एक होटल में कांदा  भजिया (प्याज़ के पकोड़े )और चाय का नाश्ता किया ।

 

 

कांदा-भजिया (प्याज़ के पकोड़े ) और चाय का नाश्ता

 

 

हम अपनी अगली मंजिल तक पहुँचने के लिए बेताब थे, जो कि अजिंक्यतारा किला था। बेताबी वास्तव में किले से ज्यादा किले  के ऊपर से सूर्यास्त को देख़ने  के लिए थी। मुझे बहुत लोगो ने बताया था कि  किले  के ऊपर से सूर्यास्त गजब दिखता  है।  मुम्बई से हाईवे पर ड्राइविंग करते हुए, जब आप सतारा शहर जंक्शन पर पहुँचते हैं और आप  होटल प्रीति एक्जीक्यूटिव को देखते हैं,बस हाईवे से आप दाहिने ओर गाड़ी मोड़ लेऔर किसी भी स्थानीय से पूछ ले या  तो गूगल मैप का अनुसरण कर सकते हैं, तो आप आसानी से अजिंक्यतारा किले   तक पहुँच सकते हैं।

 

अजिंक्यतारा किला के नाम का तख़्ता

 

 

अजिंक्यतारा किला, सतारा शहर के  बीचोबीच  एक पर्वत पर स्थित है, जो कोई भी मुंबई से आते हुए  सातारा शहर में प्रवेश करता है, शायद ही अजिंक्यतारा किला के नाम का तख़्ता न देख पाए ।  किले के गेट तक पक्की सड़क जाती है (इसलिए कोई चिंता नहीं है, अगर आप ट्रेक या पैदल नहीं जा सकते हैं) हालांकि सड़क के बारे में बात कहना चाऊंगा  की वैसे तो  पक्की सड़क है लेकिन किले के प्रवेश द्वार के कुछ दूरी पर  यह सड़क बहुत  ही दयनीय स्थिति में हैं।  यह तो हमारे दोस्त मनोहर के कौशल और धैर्य को  धन्यवाद, जो शांत दिमाग  के साथ ड्राइविंग करते रहे कि हम सुरक्षित रूप से पहुंचे वरना आज तो पाताल लोक के दर्शन की तैयारी कर ली थी हमने एक मोड़ पर आकर। 

 

 

अजिंक्यतारा किले का मुख्य प्रवेश द्वार

 

कार को पहाड़ की चोटी पर ले जाने के बाद एक नया सिरदर्द  हो सकता है ,क्योंकि  ऊपर   किले  के प्रवेश द्वार के पास  गाड़ी पार्क करने के लिए बहुत कम जगह है। किसी तरह हमें एक छोटी सी जगह मिली और हमने अपनी कार को वहाँ बड़ी  मुश्किल  से  खड़ा  किया और किले में प्रवेश करने के लिए चल पड़े। किले के प्रवेश द्वार को फूलों की माला या तोरण से सजाया गया था।

फूलो से सजा हुआ मुख्य द्वार और कुर्सियों के साथ टेंपो

 

गेट के सामने खड़े होकर, जब हम सजावट की प्रशंसा कर रहे थे, अचानक से  प्लास्टिक की कुर्सियों  से भरा एक टेम्पो हमारे बगल में आकर  खड़ा हो गया,और आगे हम कुछ जानते, किसी ने मनोहर की पीठ पर  टैप किया और उसे दो कुर्सियों उसके हाथो में थमा  दी यह  कहा कर  “दादा इसको ऊपर छोड़ दो ना” दादा का चेहरा देखने वाला था , मनोहर भाई कुछ पल के  लिए  हक्का – बक्का  हो गए , फिर चुप चाप कुर्सियां  लेकर ऊपर किले पर रखने चले गये। मेरे पूछताछ करने पर हमें पता चला कि अगले दिन कुछ पूजा थी इसलिए ये सारी कुर्सियाँ उस उद्देश्य के लिए मंगायी  गयी थी । मनोहर के पीछे मैं चल रहा था इसलिए मैंने सोचा कि  शायद अब वह आदमी मुझे भी  कुर्सियों को ले जाने के लिए बोलेगा ।लेकिन मुझे  एक हाथ में DSLR  कैमरा सँभालते हुऐ  और दूसरे  हाथ में सेल्फी स्टिक देखकर , उस महान आत्मा ने सोचा होगा  इस लुढ़कते पुड़कते  इंसान को बोलना बेकार होगा  .. इसलिए मुझसे किसी ने पूछा नहीं। ( जब मैंने मनोहर को ऊपर जाकर बताया की मुझे कुर्सियां नहीं दी गयी उठाने को, तो भाई मेरा मजाक उड़ाते हुए बोले “सोचा होगा सीनियर सिटीजन हैं , छोड़ो क्या बोलना” )

 

 

 

30-40 पत्थर की सीढ़ियाँ जो किले के दूसरे द्वार तक जाती हैं

 

 

जैसे ही हम अजिंक्यतारा किले के पहले गेट में दाखिल हुए, हमने देखा कि 30-40 पत्थर की सीढ़ी दूसरे गेट तक जाती है। दूसरे द्वार से प्रवेश करने के बाद हमें अपनी दाईं ओर एक मंदिर दिखाई देता है। यह  हनुमान जी का  मंदिर था।

 

 

हनुमान जी का  मंदिर

 

 

मैं इस किले के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता था, लेकिन मैं इंटरनेट पर ज्यादा जानकारी जुटा नहीं  पा रहा था, सिवाय इसके कि महाराष्ट्र के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है अजिंक्यतारा का किला। यह पहाड़ी किला 16 वीं शताब्दी के दौरान शिवाजी महाराज के नियंत्रण में था और इसने मराठा और समकालीन इतिहास की कुछ सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं को देखा था।

 

 

 

शब्द अजिंक्यतारा का शाब्दिक अर्थ है ‘अभेद्य किला’। यह सतारा में मराठा वास्तुकला के सबसे आश्चर्यजनक नमूनों में से एक है। यह किला पूरे सतारा शहर का एक शानदार दृश्य प्रदान करता है और वर्तमान समय में दर्शनीय स्थलों की एक लोकप्रिय जगह है। यह समुद्र तल से 3300 फीट या 1010 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 

इतिहास

यह किला 4 वीं शताब्दी में शहर की राजधानी था और शाहू महाराज के नेतृत्व में मराठों द्वारा जीत लिया गया था। तब से वर्ष 1818 तक यह किला मराठों के नियंत्रण में था। यह वही किला है जहां ताराबाई भोसले को कैद किया गया था। यह किला जब मुगलों के अधीन था, ‘अज़मतरा’ के नाम से जाना जाता था  क्योंकि औरंगजेब के बेटे का नाम आजमखान  था  हालाँकि जब इसे मुगलों से ताराबाई द्वारा हथिया लिया गया और जीत लिया गया, तब इसका नाम बदलकर ‘अजिंक्यतारा’ कर दिया गया।

 

 

किले पर देखने के लिए:

मुख्य प्रवेश द्वार पर नक्काशी और हनुमान मंदिर के अलावा किले  पर  एक सुंदर झील देखी  जा सकती है , पेड़ो के बीच यह झील बहुत ही सुन्दर  लगती है।

यहाँ के शांतिपूर्ण वातावरण में कुछ पल ज़रूर बिताए। 

किले पर एक छोटी लेकिन खूबसूरत झील है

 

 

 

फिर महादेव का एक मंदिर है जिसे स्थानीय लोगों द्वारा बहुत देखा जाता है।

 

किले के किनारे पर घूमने से नहीं चूकना चाहिए

 

पर्यटको को  किले के किनारे पर घूमने से नहीं चूकना चाहिए क्यों कि  किले  के चारो ओर  इस प्रकार से घूमने से आपको आसपास के सुन्दर पहाड़ो का नज़ारा देखने मिलता है। 

 

आसपास के सुन्दर पहाड़ो का नज़ारा

 

किले के ऊपरी हिस्से में पेड़ो की बीच से ट्रेक करते हुए ख़ूबसूरत नज़ारो  का आनंद लेते हुए आप का समय कब बीत जायेगा इसका आपको पता भी नहीं चलेगा।  

जैसे मैंने आपसे कहा था कि सूर्यास्त किले  पर बहुत ही सुंदर दिखता हैं तो एक फोटो तो बनती ही थी।

सूर्यास्त किले पर बहुत ही सुंदर दिखता है 

 

सूर्यास्त किले पर बहुत ही सुंदर दिखता है

 

शाम के दौरान सतारा शहर पूरी तरह से  झिलमिलाती रौशनी में डूब जाता है।  इस जादुई परिवर्तन का गवाह बनें।

 

झिलमिलाती रौशनी में डूबा हुआ सतारा शहर

 

इसके बाद एक तारा रानी का महल है जिसे देखा जा सकता है। यहाँ एक बात बता दें कि महल शब्द  से आप यह कल्पना न  कर बैठे , कि महल कुछ भव्य और शानदार होगा, क्योंकि आज हम महल के नाम पर जो कुछ भी देखते हैं वह केवल महल की दीवार के अवशेष  हैं। भाई अगर  महल देखना है तो थोड़ा  अपनी कल्पना को पंख दे देना  और देखते रहना ख्यालों में 

 

तारा रानी का महल….आज सिर्फ अवशेष बचे पड़े हैं।

 

 मंगलादेवी का मंदिर भी है जो देखा जा सकता है और अंत में आप किले के दक्षिण प्रवेश द्वार को देख सकते  है जो आश्चर्यजनक रूप से पहले  प्रवेश द्वार की तुलना में नया और सुव्यवस्थित दिखता है।

 

दक्षिण प्रवेश द्वार

 

कैसे पहुंचा जाये :

सतारा,मुंबई से २६६ किमी दूर है और पुणे से 115 किमी दूर है। सतारा रेलवे स्टेशन भारत भर की ट्रेनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, इसलिए इस स्थान तक रेल और सड़क के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।

 

दिन खत्म होने जा  रहा था; और चारो तरफ अंधेरा हो गया था और  हम अजिंकतारा किले  से  बाहर  आ  गये।  हमारा अगला काम, आज रात ठहरने के लिए एक होटल खोजना था क्योंकि हमने कल कुछ और जगहों पर जाने की योजना बनाई थी।

तो दोस्तों  आप लोग  मेरे ब्लॉग के अगले भाग के लिए बने रहिए और आइए देखते हैं कि सतारा में देखने के लिए और कौन – कौन से प्राचीन और  इतिहासिक खजाने है। 

मेरे ब्लॉग को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अगर आपको मेरे ब्लॉग पसंद आते हैं तो कृपया उन्हें अपने दोस्तों के साथ साझा करें, कृपया आप  मेरी साइट को Subscribe करे  और आपकी टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए ब्लॉग पर टिप्पणी ज़रूर  करें।

 

Thank you

 

 

 

नेहा और मैं(मनोहर कैमरा से शर्माता है,इसलिए तस्वीर में नहीं है)

 

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admin - Author

Hi, I am Aashish Chawla- The Weekend Wanderer. Weekend Wandering is my passion, I love to connect to new places and meeting new people and through my blogs, I will introduce you to some of the lesser-explored places, which may be very near you yet undiscovered...come let's wander into the wilderness of nature. Other than traveling I love writing poems.

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Aashish Chawla
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