हम लोग जब कल लाचेन पहुंचे तो हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। (यदि आप युमथांग घाटी की हमारी यात्रा का वृतान्त पढ़ना मिस कर गए हो ,तो आप इसे पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं)। लाचेन पहुँच कर जब हमने अपने होटल के कमरे में प्रवेश किया,तब मेरी नज़र कमरे की खिड़की पर पड़ी, और जैसे हमेशा होता है कि कमरे से बाहर का नज़ारा कैसा होगा ये जानने की जिज्ञासा रहती है , बस क्या था , न आव देखा न ताव मैं लपक कर खिड़की की ओर बढ़ गया और जल्दी से खिड़की खोल दी, जैसे ही खिड़की खोली, तो एक मीठी सी ठंडक ने मेरे चेहरे को छू कर सहलाया और उसी पल खिड़की के बाहर प्रकृति की बनाई तस्वीर देखी तो मेरा मन गार्डन गार्डन हो गया, क्योंकि नज़र के सामने पहाड़ों के बीच से निकलती नदी और बहती नदी का दूध जैसे सफ़ेद पानी के मनोरम दृश्य ने मुझे मोहित कर दिया । कुछ देर युहीं खिड़की पर बैठकर और इस तरह के नज़ारों का लुत्फ लेते हुए मेरा मन कही खो गया और मैं लाचुंग से लाचेन तक साढ़े तीन घंटे की ऊबड़-खाबड़ कार की सवारी की सारी थकान भूल गया।
आपको शायद याद होगा,मेरे पिछले ब्लॉग में मैंने उल्लेख किया था कि लाचुंग शहर में कहीं पर भी बिजली नहीं थी। हे भगवान् ! अब किस्मत देखो, इधर भी बत्ती गुल थी , ऐसा क्यों लगता है की जीवन कभी-कभी बहुत ही कठोर हो जाता है। मैं ने भगवान से प्रार्थना की, हे भगवान्! बच्चे की जान मत लो ! जीवन में कुछ प्रकाश प्रदान करो ! (वस्तुत:) , पर लगता है आज भगवान् वरदान देने के मूड में नहीं है। क्यों की होटल के मालिक ने बताया के रोड पर एक्सीडेंट के कारन एक बिजली का खम्बा टूट कर गिर गया है ,तो बिजली आने में कुछ समय लगेगा। मैंने सोचा अब कमरे में क्या बैठना, स्थिति का फायदा उठाते हुए मैंने और मेरी पत्नी ने फैसला किया चलो क्यों ना लाचेन शहर में एक छोटी सी चहलकदमी कर ली जाए। लाचेन एक छोटा सा शहर है जिसमें सड़क के दोनों ओर छोटी-छोटी दुकानें और होटल हैं।
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पहाड़ों के बीच बसा यह अपने आप में एक बहुत ही खूबसूरत शहर है। शाम की हलकी-हलकी ठंड और रिमझिम बारिश ने इस जगह की सुंदरता को और बढ़ा दिया।कुछ दूर चलते चलते मंद रोशनी में कुछ जानी पहचानी सी खुशबू हमे अपनी ओर आमंत्रित कर रही थी , दूर अँधेरे में,हलके से धुंए में टिमटिमाती मोमबत्ती की रोशनी के बीच हमे एक छोटी सी चाय की दुकान दिखाई दी। क़रीब जाने पैर समझा की धुआँ चाय की केटली से निकल कर आ रहा था। बारिश , ठण्ड और चाय , इस से डेडली कॉम्बिनेशन क्या हो सकता है. दिल बोला चल यार एक प्याली चाय हो जाये।अब चाय को कोई कैसे मना कर सकता है ! बारिश में चाय पीते हुए न जाने क्यों मुझे राज कपूर की फिल्म बरसात वाली फीलिंग आ रही थी , शायद अपुन की नरगिस आज अपने साथ थी , शायद इसीलिए आज दिल कुछ आशिकाना सा हो गया। हम दोनों ने इतने खूबसूरत सेटअप में एक-एक गर्म चाय की प्याली का आनंद लिया। चाय की एक एक चुस्की उस ठण्ड में गले से नीचे उतरते -उतरते एक आनंदमय गरमाहट का अहसास महसूस करा रही थी। मेरा विश्वास करो, यह क्षण मेरे दिल और दिमाग में जीवन भर दीवार पर लगे पोस्टर की तरह चिपका रहेगा। चलो अब छोड़ो यार नहीं तो आप बोलोगे बंदा सेंटी हो गया। इसी बात पर गुंडे फिल्म के गीत की दो पंक्तिया याद आ गयी जो कुछ ऐसी थी। ..
और सेंटी होके बातें भी
तू कर रहा है सेंटियाँ रे.टन टन ….
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शुक्र है भगवान् का कि हम जब टहल कर वापस आये तो हमारे होटल में बिजली आ गयी थी। होटल में खाने की व्यवस्था भी अच्छी थी , मस्त पनीर और गरमा गर्म दाल, के साथ अचार चाटते हुए रात का भोजन खत्म किया और फिर सोने के लिए अपने कमरे में चले गये और जल्दी सो गए क्योंकि कल हमारे सामने एक लंबा और चुनौतीपूर्ण भरा दिन था ।
नया दिन-नये नज़ारे
सुबह की शुरुआत अगर बहुत सवेरे की जाये तो वह हमेशा सुखद होती है, और अगर वह सुबह पहाड़ों में हो तो आनंद ही आनंद। हलकी हलकी बारिश ,चहकते पक्षी, पत्तों पर ओस की बूंदें,चारों ओर हरयाली,और फूलों की बिछी हुई चादर जिसमे रंगों का विस्फोट, प्रकृति की सुंदर कृति में यह दृश्य चार चांद लगा देता है।
आज के दिन के लिए हमारी योजना पहले गुरुडोंगमार झील की यात्रा करने की थी, और फिर दोपहर के भोजन के लिए वापस लाचेन लौटने और अंत में आज ही गंगटोक जाने की थी।
हमारी यात्रा:
गुरुडोंगमार झील पर जाना थोड़ा अलग और साहसिक अनुभव है, आखिरकार यह हर दिन तो होता नहीं है कि आप 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक झील की यात्रा करें! तो अगर आप गुरुडोंगमार झील की यात्रा करने का इरादा रखते हैं तो अपनी कमर कस ले और कुछ छोटी-छोटी तैयारी कर लीजिए। मैंने ब्लॉग के अंत में आपके लिए कुछ टिप्स का उल्लेख किया है उसे ध्यान में ज़रूर रखे, फ़िलहाल चलो हमारे साथ हमारे ब्लॉग द्वारा हमारी यात्रा का आनंद ले।
सफर की शुरुआत सुबह जल्दी करना हमेशा बेहतर होता है, और अगर यात्रा लंबी है तो यह और भी अच्छा विकल्प बन जाता है । इस बात को ध्यान में रखते हुए हम अपने होटल से सुबह 6.00 बजे निकले। क्यों कि हम जल्दी निकल रहे थे ,हमारे होटल के कर्मचारियों ने हमारे नाश्ते के लिए उपमा का पैक किया हुआ नाश्ता हमे कार में खाने के लिए सौंप दिया। (यह यहाँ आम बात है क्योंकि ज्यादातर मेहमान गुरुडोंगमार झील जाने के लिए जल्दी निकल जाते हैं और अगर होटल में बैठकर नाश्ता शुरू हो गया तो राम जाने गुरूड़ोंमार झील कब पहुंचेगे ) हमारी टैक्सी गाँव की संकीर्ण सड़क से होते हुए निकल पड़ी , छोटे-छोटे रंग बिरंगे घरो को पीछे छोड़ते हुए और बहुत ही जल्द हमे बड़े- बड़े पहाड़ हमारे आसपास दिखाई पड़ने लगे।
जैसे-जैसे हमारी कार आगे बढ़ रही थी, हमें ऊंचाई पर जाने का अहसास होने लगा, हवा में ठंड बहुत ज़्यादा थी और हमने जल्द ही पहाड़ों की इस ऊबड़-खाबड़ सवारी पर अपना उपमा का नाश्ता खाना शुरू कर दिया। एक बार तो उपमा खाते – खाते मेरे साथ कॉमेडी हो गयी, चम्म्च में उपमा भरकर मुँह में ठूस ही रहे थे की गाडी एक गड्ढे से होकर निकली और चम्म्च मुँह में जाने की बजाये सीधा नाक में घुस गया और मैं चिलाया आउच । अरे भाई यही तो सफर का मजा है, मज़े लो जंपिंग ब्रेकफास्ट के।
हमारा आगे का सफर बेहद ऊबड़-खाबड़ सड़को से होते हुए था और चढ़ाई खड़ी थी, हमारे चारों ओर विशाल पहाड़ों के मनोरम दृश्य सफर का कष्ट हमे महसूस होने नहीं दे रहे थे , सड़क शुरू में अच्छी थी लेकिन जल्द ही एक कीचड़ भरी पगडंडी बन गई। लेकिन बाहर का नजारा इतना लुभावना था कि हम शिकायत नहीं कर सकते थे। हमारी निगाहें बस हमारे आगे की राह पर लगी पड़ी थीं। याथांग वैली में प्रवेश करते ही हमारे आस-पास के दृश्य बदलने लगे । हमने यहाँ टॉयलेट करने के लिए रुकना उचित समझा क्यों की यहाँ एक कैफ़े था जिसको लगकर एक शौचायल था।
लेकिन मैं जैसे ही कार से नीचे उतरा बाहर इतनी ठण्ड थी मैं जितनी तेज़ी से उतरा था उससे डबल स्पीड में वापस गाड़ी में दुबके बैठ गया , देखने वालो को लगा होगाकि कि यह भाई साहेब गाड़ी से कभी नीचे उतरा भी था। अगर सुसु नहीं आया होता तो मैं कभी बाहर नहीं निकलता… प्रकृति का आह्वान… जाना ही पड़ेगा रे बाबा अब जब गाड़ी से नीचे उतर ही गया था तो सोचा भाई क्यों न एक फोटो भी हो ही जाये, मौके पर अगर चौका नहीं मारा तो फिर काहे के हम Weekend Wanderer.
10 मिनट की छोटी ड्राइव और हम थांगू घाटी में थे। हम एक छोटे से चाय के ब्रेक के लिए रुके, ठण्ड में गरमा गरम चाय अपने आप में एक बहुत ही सुखद एहसास था , चाय की चुस्की लेते हुए मैं अपने आगे फैले पहाड़ देख कर एक अजीब सी ख़ुशी महसूस कर रहा था, मेरी पत्नी और बेटी ने मैगी खाई. अब यहाँ से आगे निकलकर हम कुछ देर मिलिट्री चौकी पर अपने परमिट दिखाने के लिए रुके । दरअसल, थांगू सैन्य चौकी भी है जहां वे आपके कागजात की जांच करते हैं। नाथुला दर्रे और गुरुडोंगमार झील में विदेशियों को अनुमति नहीं है क्योंकि ये दोनों अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र हैं। चीन की सीमा बहुत करीब है इसलिए जब आप थंगू घाटी में प्रवेश करते हैं तो आपको लगता है कि आप एक सैन्य क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। इस क्षेत्र के आसपास फोटोग्राफी प्रतिबंधित है।
एक बार जब हमारे कागजात चेक हो गये तो हम फिर से गुरुडोंगमार झील के रास्ते पर निकल पड़े । हालांकि, अब नजारा पूरी तरह से बदल गया था। आगे के पहाड़ों का नज़ारा बेहद अद्भुत लग रहा था, हमारे चारों ओर के पहाड़ काले रंग के थे और सड़क रेगिस्तान से होकर गुजरती हुई प्रतीत होती थी क्योंकि दोनों तरफ वनस्पति नहीं थी और जगह काफी शुष्क दिखती थी। घुमावदार सड़क, ऊपर नीला आसमान और काले पहाड़ों से घिरती काली सड़क ने माहौल को वाकई काफी रहस्यमय बना दिया था।
जल्द ही हम अपनी मंजिल पर पहुंच गए। हाँ, अंत में मैं गुरुडोंगमार झील पर पहुँच ही गया। हे भगवन आपका लाख लाख शुक्रिया जो आपने मेरा एक और सपना पूरा कर दिया। ..
जैसे ही मैं कार से नीचे उतरा, तेज़ हवा में मुझे ज़बरदस्त ठण्ड सी लगी, भले ही मैंने जैकेट पहन रखी थी । अगली चीज़ जो मैंने देखी उसने मेरे होश उड़ा दिये , पहाड़ों के बीच बसी एक प्यारी सी शांत फ़िरोज़ा रंग की झील का दृश्य देख कर लगा जैसे मैं कोई दूसरे ही गृह पर आ गया था । हम सब के मुँह कुछ पल के लिए आश्चर्य से खुले के खुले ही रह गए , वाह, वाह कहने के सिवा और कोई शब्द कंठ से बाहर ही नहीं निकल रहा था । ईमानदारी से कहुँ तो सिक्किम आने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए गुरुडोंगमार झील की यात्रा अनिवार्य होनी चाइए । वास्तव में, मैं कहूंगा कि इस जगह की यात्रा उन स्थानों की सूची में होनी चाहिए जिन्हें हमने मरने से पहले ज़रूर देखना चाहिए!
गुरुडोंगमार झील एक हाई अलटीटुडे (High Altitude ) वाली झील है इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि उचित सावधानी बरती जाए और दौड़ने, कूदने आदि गतिविधियों में शामिल होने से बचना चाहिए क्योंकि हवा में ऑक्सीजन की कमी के कारण आप गहरी परेशानी में पड़ सकते हैं।
हम झील की पार्किंग क्षेत्र से नीचे की ओर चले गए( पार्किंग झील से कुछ २०-३०फ़ूट ऊपर है), ताकि हम झील के पानी के करीब हो सकें। (यदि आप थकना नहीं चाहते हैं तो ऐसा करना छोड़ सकते हैं). क्योंकि, मुझे और मेरी मेरी बेटी को फोइटोग्राफी में बहुत दिचस्पी है तो हमारे पास यहां भी तस्वीरें क्लिक करने का अच्छा अवसर था और इसीलिए हम लोग छोटी पगडंडी से नीचे की और उतरने लगे.
कुछ पल हम लोगो ने झील की तस्वीरें ली और फिर वापस ऊपर की और फिर से सीढिया चढ़ने लगे । सीडी चढ़ते समय, मेरी पत्नी को चक्कर आने लगे( दोस्तों यह हाई अलटीटूटे सिकनेस का एक संकेत था) और उसे सीढ़ियाँ चढ़ने में कठिनाई हो रही थी। किसी तरह वह ऊपर की पार्किंग पर पहुँच गयी। हमने उसे पानी दिया, केम्फर हम साथ लेकर गए थे वह भी
सुंघा दिया। वहां मौजूद भारतीय सेना के एक जवान ने हमें चॉकलेट दी और जल्द ही वह बेहतर महसूस कर रही थी। हमारे ड्राइवर ने हमें 20 मिनट से ज्यादा नहीं बिताने के लिए कहा था, लेकिन कल्पना कीजिए अगर इतनी गज़ब की खूबसूरती आंखों के सामने हो ,और आप पतली गली लेके निकले ले …सवाल ही नहीं उठता बिड़ू । सच पूछो तो अब इस स्वर्ग का अनुभव करने के लिए एक जीवन भी कम है, हमने तो सिर्फ 45 मिनट का समय ले लिया था. यह तो ऊपर वाले का शुक्र है की हम स्वर्ग का एहसास करते हुए खुद स्वर्ग नहीं निकल लिए आक्सीजन की कमी की चलते। भारी मन से अब गुरुडोंगमार झील को अलविदा कहने का समय आ गया था।
आम तौर पर, वापसी की यात्रा अक्सर दिलचस्प नहीं होती है, लेकिन हमारी आज की गुरुडोंगमार झील से वापसी की यात्रा न केवल रोमांचकारी थी, बल्कि लगभग मौत को मात देने वाला अनुभव था। ऐसा हुआ कि हम ड्राइव करते हुए वापस चल पड़े लाचेन की ओर। कुछ पल ड्राइव करने के बाद हमे थोड़ी सी बूंदा बांदी का एहसास हुआ और जब कार से गर्दन बाहर निकाल कर देखा तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्यों कि बॉस यह बूंदा बांदी नहीं बल्कि बर्फ गिर रही है। हम बहुत उत्साहित थे क्योंकि यह पहली बार था जब मेरे पूरे परिवार ने कभी एक लाइव snowfall देखा हो।
हम,अभी हमारी ख़ुशी पूरी तरह से हज़म भी नहीं कर पाए थे की हमारी ख़ुशी को ज़ोर की ब्रेक लग गयी , क्योंकि अगले ही पल हम मौत को मात देने वाले अनुभव को देखने वाले थे, हुआ यु की जब हम चारों ओर बदलते दृश्यों का आनंद लेने में व्यस्त थे, काले पहाड़ को सफ़ेद बर्फ में बदलते हुए देख रहे थे ,उसी वक़्त ! हमारे सामने की कार अचानक से नियंत्रण खो बैठी ,(अप्रत्याशित हुई इस हिमपात के कारण सड़क गीली से हो गयी थी , बहुत ही खतनाक अंदाज़ से हमारे आगे वाली कार दायीं ओर तेज़ी से घूम गयी और साइड से जा टकराई और कार पलट गई।
यह हमारा सौभाग्य था की हमारा कार चालक धीरे-धीरे चला रहा था अन्यथा दुर्घटना से बचने के लिए हम भी कहीं फंस जाते और दुर्घटनाग्रस्त हो जाते। यह दिल दहलाने वाला दृश्य देखकर हमारी तरह हमारा कार चालक बुरी तरह घबरा गया था, इतना कि वह जम कर बैठ गया और बोला “सर हमारे साथ भी ऐसा हो सकता था ” आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन अगले 5 मिनट के लिए गरीब आदमी ने गाड़ी चलाने से इनकार कर दिया। एक मिनट के लिए मैं भी चिंतित था “अगर ये ड्राइवर ही डर गया तो हम लोग कैसे जाएंगे” मैं अपनी बेटी और मेरी पत्नी के चिंतित चेहरे देख सकता था और मुझे पता था कि उनकी भी यही आशंकाएं हैं। “साला तब मेरे को लगा अब ज्ञान देने का समय आया, जैसा कि श्री कृष्ण जी महाभारत में अर्जुन से कहते है। ..पार्थ, चल युद्ध कर
मैंने ड्राइवर को उत्साह देते हुए कहा “चल अपुन 10 किमी की स्पीड से 1st गियर में चलना शुरू करते है । वह आश्वस्त नहीं लग रहा था लेकिन मैं कोशिश करता रहा।। 15-20 मिनट से अधिक समय के बाद ड्राइवर की थोड़ी बहुत हिम्मत बड़ी और हम आगे बढ़े। जैसे ही हम थोड़ा आगे बढ़े, हमने देखा कि कुछ बाइक वाले दूर सामने से आ रहे थे। बाइक वालो ने जैसे ही मोड़ पर बाइक मोड़ने की कोशिश की , वैसे ही वे एक एक कर के फिसल कर सड़क पर गिरने लगे मानो जैसे ताश के पत्ते हो । यह इतना भयानक दृश्य था और यह सब देखने के बाद, मेरी चिंता यह थी कि अब फिर से मेरा ड्राइवर डर के मारे स्टीयरिंग छोड़ न दे । शुक्र है अब की बार ऐसा कुछ नहीं हुआ और मैंने चैन की साँस ली।
हम दोपहर में लाचेन पहुंचे, हमने होटल में दोपहर का भोजन किया और आज अपने अंतिम गंतव्य यानी गंगटोक के लिए चल पड़े।
Traveler Tips:
सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है, क्योंकि गुरुदोंमार झील एक हाई अलटीटुडे (high altitude) वाली झील है, इसलिए आपको AMS बीमारी होने की पूरी संभावना है जो आपको मतली, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आ सकते है, इसलिए यात्री को कुछ सावधानियां लेनी चाइए ।
1. ढेर सारा पानी पिएं और खुद को अच्छी तरह से हाइड्रेट(Hydrated) रखें।
2. कुछ लोग इस झील में आने से एक दिन पहले डायमॉक्स लेते हैं (व्यक्तिगत रूप से मुझे diamox लेने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। बेहतर होगा कि आप इस पर अपने डॉक्टर से सलाह लें)।
3. हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।
4.आपकी यात्रा जल्दी शुरू करे क्योंकि मुझे सूचित किया गया था कि सेना सुबह 11 बजे तक ही प्रवेश की अनुमति देती है।
5 . आप पॉपकॉर्न भी ले जा सकते हैं (व्यक्तिगत रूप से मुझे नहीं पता कि यह कितना प्रभावी है, लेकिन हाँ यह आपका ध्यान हाई अलटीटुडे सिकनेस से हटा सकता है)। कुछ लोग केम्फर भी रखते है
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