चित्तौड़ किले पर सदियों से कई बार हमला किया गया था, अंतिम रूप से मुगल थे। राजपूत वंशों को उनकी वीरता के लिए जाना जाता है और उन्होंने हमेशा आक्रमण के किसी भी रूप में मजबूत प्रतिरोध दिया।
विजय स्तम्भ चित्तौड़गढ़ किले के भीतर एक नौ मंजिला भव्य संरचना है। इस मीनार को मालवा के सुल्तान की जीत के उपलक्ष्य में बनाया गया था। इस शानदार टॉवर की ऊंचाई 37.19 मीटर है और इसे 1448 ई। में महाराणा कुंभा द्वारा बनवाया और संरक्षित किया गया था।
आंतरिक सीढ़ी केंद्रीय कक्ष और आसपास की गैलरी के माध्यम से बारी-बारी से जाती है। मीनार के ऊपरवाले तल में उत्कीर्ण शिलाओं में हमीर से राणा कुंभा तक के चित्तौड़ के शासकों की वंशावली है।
इस शानदार स्तम्भ के वास्तुकार जैता और उनके तीन पुत्रों नपा, पूजा और पोमा के चित्र को मीनार की 5 वीं मंजिल पर उकेरा गया है।
टॉवर के शीर्ष तक पहुंचने के लिए 157 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं । मुझे बताया गया था कि शहर का दृश्य ऊपर से काफी आकर्षक लगता है। दुख की बात है कि जब हम इस जगह पर गए, तो हमें टॉवर पर चढ़ने की अनुमति नहीं थी। मुझे लगता है कि कोविड प्रतिबंधों के कारण हम लोगों को टॉवर के शीर्ष पर जाने की अनुमति नहीं दी गई होगी । इसी कारण से हमे विजय स्तम्भ की तस्वीरें बाहर से ही लेकर संतुष्ट होना पड़ा।
विजय स्तम्भ के ठीक सामने मुझे एक विशाल मैदान दिख रहा था।
विजय स्तम्भ के आस -पास के क्षेत्र में स्मारकों और मंदिरों के खंडहरों के अवशेषों सब जगह नज़र आते है ।
जिसमें दो स्मारकीय द्वार है।
विजय टावर से गौमुख कुंड के रास्ते पर, हमने एक बहुत पुराना,और सुन्दर मंदिर देखा जिसकी अद्वितीय वास्तुकला दर्शनीय है ।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि इस मंदिर को समाधीश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और इसे मोकलजी का मंदिर भी कहा जाता है।
इस मंदिर के गर्भगृह में त्रिमूर्ति की एक छवि है जिसमें शिव ,ब्रह्मा और विष्णु की एक समग्र तीन सिर वाली छवि है।
मूल रूप से मंदिर राजा भोज द्वारा बनाया गया था। लेकिन महाराणा मोकल ने इसे फिर से बनवाया और इसीलिए इसे मोकलजी का मंदिर भी कहा जाता है।
समाधीश्वर महादेव एक बहुत ही सुंदर नक्काशीदार मंदिर है जिसके बाहरी हिस्से में बहुत सारी सुन्दर -सुन्दर नक़्क़ाशी वाली मूर्तियाँ हैं ।
इनमें से कई नक्काशियों में युद्ध के दृश्यों या कहानियों को दर्शाया गया है, जब भी मैं ऐसी रोचक नक्काशी और मूर्तियों को देखता हूं तो मैं असहाय हो जाता हूं कि क्यों मैंने इंडोलॉजी का ज्ञान प्राप्त नहीं किया।
अब इस छोटे से जीवन में देखना बहुत कुछ है ,पर ये सब कैसे होगा ???
अगर आपको याद हो कि मेरे पहले ब्लॉग में कैसे एक दुर्घटना हुई थी जिसकी वजह से मेरी पत्नी के घुटनों में सूजन आ गयी थी और वो ज्यादा चलने में असमर्थ थी। इसीलिए मैंने उसे विजय स्तम्भ के पास बैठने को कहा और मैं जल्दी-जल्दी तस्वीरें क्लिक करने लगा , याद है ना ऑटो वालो ने धमकी दी थी, जल्दी करो वरना ..
. ….. बस उसी का असर था …. यह भागम-भाग
मंदिर के ठीक बगल में सीढ़ियाँ हैं जो एक जल कुंड की ओर जाती हैं, ये रास्ता आपको गौमुख जलाशय / गौमुख कुंड तक ले जाते हैं।
गोमुख जलाशय, किले के चौरास्सी जल निकायों में से एक है जिस में आज तक पानी भरा हुआ है। कुंड को प्राकृतिक झरना माना जाता है। पानी की उत्पत्ति संभवतः एक जलभृत है। जल विज्ञान के अनुसार, पृथ्वी की सतह के नीचे कुछ स्थानों पर, पारगम्य चट्टानों, रेत और गाद की परतों में पानी आरक्षित हो सकता है।इस संग्रहित जल से पृथ्वी की सतह से पानी निकलता है जिससे जलभराव की उत्पत्ति होती है।
देवी लक्ष्मी का एक शिवलिंग और एक चिह्न गौमुख का आधार है जहाँ पानी गिरता है। इस जलाशय में असंख्य मछलियाँ रहती हैं। तीन प्रसिद्ध घेराबंदी के दौरान जब दुश्मन सैनिकों ने चित्तौड़गढ़ किले को आवश्यक आपूर्ति में कटौती की, गौमुख जलाशय निवासियों को एक साथ दिनों के लिए पानी पिलाया।
चितौड़गढ़ दुर्ग के समाधीश्वर मंदिर के समीप स्थित गौमुख कुंड का निर्माण भी संभवत राजा भोज ने 11 वी शताब्दी में समिधेश्वर मंदिर के साथ ही करवाया होगा। गौमुख में जाने के दो रास्ते है एक समिधेश्वर मंदिर के दायी तरफ से जो की अपेक्षाकृत खुली सीढ़ियों से नीचे की तरफ जाता हुआ मार्ग थोड़ा ठीक नहीं है और दूसरा बाहर की तरफ से चालुक्य (चौहान) कालीन निर्मित पोल के अंदर से जाता हुआ मुख्य मार्ग है। मैंने नीचे जाने के लिए मुख़्य मार्ग को चुना। यहां से नीचे उतरते ही कुछ दूरी बाद एक प्राचीन जैन मंदिर नज़र आता है और आगे नीचे की तरफ एक अन्य मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है की वो कुम्भा महल से एक भूमिगत सुरंग से जुड़ा हुआ है।
गर्मियों के मौसम में इस गोमुख कुण्ड का जब जल-स्तर कम हो जाता है उस समय यहाँ पर शिव परिवार की पानी में स्तित मूर्तियों के दर्शन होते हैं।
गौमुख कुंड के बारे में एक और अनोखी बात पता चली की इतने वर्षो में कितनी भी भीषम गर्मी पड़ी हो , कुंड का पानी कभी पूरी तरह से सूखा नहीं।
चित्र लेने के बाद मैं इस परिसर से बाहर आया। तापमान बहुत ऊपर जा रहा था इसलिए हमने अपनी प्यास को निंबु पानी से बुझाया और अपने ऑटो में सवार होकर अगले गंतव्य रानी पद्मावती पैलेस में चले गए।
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