हमारे सतारा रोड ट्रिप के DAY-1 पर हमने निम्नलिखित 3 स्थानों का दौरा किया था।
DAY-2
आज के लिए हमारी योजना यह थी कि हम सफर की जल्दी शुरुआत करेंगे, क्योंकि हमने खुद को समय सीमा दी थी कि 4 बजे तक हम सातारा शहर छोड़ देंगे ताकि हम मुंबई में रात 11:00 बजे तक पहुँच जाये क्योंकि अगले दिन सोमवार होने के कारण सभी को अपने कार्यालयों में होना था।
हम जब अपने होटल से बाहर निकले तो उस समय काफी अंधेरा था, मैंने अपनी घड़ी देखी तो जाना कि सुबह के 6 बजे थे । मैं ठंडी हवा को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था, दूसरे शब्दों में कहे तो में सर्दियों की ठंडक को वास्तव में महसूस कर रहा था , धन्यवाद भगवान का कि मेरे पास मेरी ऊनी जैकेट थी, ठण्ड इतनी थी की नेहा जल्दी से कार में बैठ गई और जैसे ही वह कार में बैठी , उसने जोर से घोषणा कि “अब जब चाय की दुकान दिखेगी तब ही मैं नीचे उतरूंगी “।
सौभाग्य से हमने कुछ ही दूरी पर एक लौ को जलते देखा और उसके पास पहुँचने पर हमें यह जानकर राहत मिली कि यहाँ एक महिला थी जो चाय बनाने के लिए चूल्हा जला रही थी। अहा! अंत में चाय मिल ही गई। दोस्तों सोचो ज़रा ,अगर ठण्ड में हाथो में गरम-गरम चाय की प्याली मिल जाये तो जीवन तृप्त हो जाये , बस कुछ ऐसा ही एहसास महसूस हुआ हमे। अब रेडियेटर में गरमा-गरम चाय जाने से इंजन आगे के सफर के लिए पूर्ण रूप से तैयार था।
हमारी गाड़ी अब तेज़ी से सतारा शहर पीछे छोड़ते हुए देगॉव की तरफ चल पड़ी थी, रास्ते एकदम सुनसान से थे, सुबह की धुंध और कार में स्टीरियो पर बजते बर्मन दादा के गीत अपने आप में एक डेडली कॉम्बिनेशन जैसा प्रतीक हो रहे थे । सफर की कुछ ऐसी बाते ही होती है, जो अकेले में बैठकर याद करो तो मन आनंद से प्रफुल्लित हो जाता है।
देगॉव रोड से डायवर्सन लेने के बाद हम एक गाँव में दाखिल हुए।
यहाँ गाँव की सड़कें बहुत संकरी थीं और दूसरी समस्या यह थी कि हमारी जानेवाली सड़क के किनारे पर मलबे का ढेर था, हम सोच रहे थे कि अब हम कैसे आगे बढ़ेंगे, क्योंकि Google किसी वैकल्पिक मार्ग का सुझाव नहीं दे रहा था. एक बात तो तय थी या तो हम यह रास्ता पकड़े या फिर वापस लौट चले , मैदान छोड़कर वापस जाना तो हम लोगो की फितरत में था नहीं तो सोचा कि क्या तरकीब लगायी जाये की हम अपनी मंज़िल कीओर जा सके । फैसला यह हुआ कि हम इंतज़ार करते है किसी गाड़ी का , अगर वह यहाँ से चली गयी तो फिर हम भी कोशिश करते है.. देखते देखते कुछ ही पल में एक मारुती कार गुजारी , ड्राइवर ने बड़ी परेशानी झेलते हुए उस तंग सड़क से अपनी कार निकाल ली , बस अब क्या था हम भी जोश में आ गये और हम भी शेर बन गए, हिम्मत कर के धीरे धीरे गाड़ी निकल ही ली. दोस्तों ! परेशानियों का तो यह बस एक ट्रेलर था ,आगे-आगे देखिये होता है क्या ,क्योंकि कुछ मिनटों तक गाड़ी चलाने के बाद आगे का रास्ता और भी खराब होता जा रहा था। दरअसल स्थानीय अधिकारी नई सड़क बिछा रहे थे, इसलिए सड़क पर बिछाए गए पत्थरों पर रोड रोलर का इस्तेमाल किया जाना बाकी था। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसी नुकीले पत्थरों वाली सड़क पर गाड़ी चलाना कितना मुश्किल था। एक जगह पर आकर मनोहर ने कहा कि अब मैं गाड़ी आगे चला नहीं सकता क्योंकि सड़क बहुत ही खराब है,तो हम लोग कार से नीचे उतर गए और आगे का रास्ता पैदल चलने को तैयार हो गए,जब गूगल मैप में देखा तो पता चला की कम से कम ३ किलोमीटर का रास्ता आगे चलने का था। बोला था न आपको,जो हुआ अब तक वह तो ट्रेलर था ।
हम लोगों ने धीरे-धीरे अपना रास्ता तय करना शुरू कर दिया,कुछ दूर चलने के बाद जब चढ़ाई शुरू हुई तो हमे थकान और गर्मी हल्की सी महसूस होने लगी, प्यास का एहसास हुआ और प्यास लगते ही यह एहसास हुआ कि हम तो पानी की बोतल भूल ही गए, ओह तेरी ! वह तो कार में ही रह गयी , मैं झुँझलाते हुए ज़ोर से बोला,पर फिर सोचा,जब ओखली में सर दिया तो मूसल से डरना क्या
मूड ख़राब न हो इसलिए हम लोग एक दूसरे के साथ हँसी मजाक करते हुए, तो कभी फोटो निकालते हुए कुछ देर घुमावदार सड़क पर चलते रहे। आखिरकार हम पहाड़ पर पार्किंग में पहुंच गए। ऊपर पहुँचते ही , हम क्या देखते है कि एक कार खड़ी थी, मेरे मन में विचार आया कि काश हम भी थोड़ी कोशिश कर लेते तो यह चढ़ाई चढ़नी न पड़ती, पर क्या करे हमारे मामले में कार मनोहर की थी, इसलिए यह हमेशा मालिक का विशेषाधिकार होता है वह उस सड़क पर गाड़ी चलाना चाहता है या नहीं।
हम थके हुए और प्यासे भी थे और हमारे पास पीने के लिए पानी नहीं था। हम उम्मीद कर रहे थे कि हमें ऊपर थोड़ा पानी मिल जाये । हमारे बीच मनोहर सब से तेज था चलने में इसीलिए वह मंदिर की ओर पहले बढ़ गया , लेकिन नेहा और मैंने पार्किंग के वहां से नीचे दिख रही घाटी का आनंद लेने में कुछ समय बिताया, हमने कुछ तस्वीरें लीं और आगे बढ़ गए।
अब पार्किंग से हमने अपनी आगे की यात्रा शुरू की ,पार्किंग से पत्थर की सीढ़ियां ऊपर की तरफ जाती है जो पटेश्वर मंदिर की तरफ लेकर जाती है।
कुछ सीढ़ियां चढ़ने के बाद ही हमारे दाहिनी तरफ गणेश जी कीऔर उनकी दो पत्नियां रिद्धि सिद्धि की मूर्तियां दिखती हैं।
यहां से फिर कुछ और ऊपर सीढ़ियां चढ़ते हैं और ऊपर चढ़ने के बाद जो आगे का रास्ता है वह सपाट है और कुछ आधा किलोमीटर का ट्रैक(trek) और है। एक जगह पर आकर हमे अपनी दाहिनी ओर एक पानी का कुंड नज़र आता हैं।
पानी के कुंड के साथ लगकर एक आश्रम है, आश्रम के पीछे से एक पत्थर की सीढ़ियां जो लगभग 20 या 30 होंगी ऊपर मंदिर की तरफ जाती है।
पटेश्वर मंदिर
हम वह सीढ़ियां चढ़कर पटेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार के पास पहुंच जाते हैं। बाहर से देखने पर ऐसा आभास होता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है। इंटरनेट पर इस मंदिर के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
मंदिर के मुख्य द्वार के बाईं ओर एक विशाल शिवलिंग है, विशाल इसलिए कहता हूं क्योंकि यह शिवलिंग की ऊंचाई कम से कम 4 फुट तो थी।
शिवलिंग के बगल में जो प्रवेश द्वार है , हम ने वहां से मंदिर के परिसर में प्रवेश किया। मंदिर के परिसर में प्रवेश करने पर, सबसे पहली चीज जो आप चौखट से देखते हैं, वह है नन्दी जी की मूर्ती।
मंदिर के आंगन में प्रवेश करते ही हमे एक बहुत ही खूबसूरत, शांत और दिव्य मंदिर दिखता है।
हम लोग मुख्य मंदिर के अंदर जब गए तो वहां विभिन्न मूर्तियों को देखकर चकित रह गए शिवलिंग के अलावा मंदिर में विष्णु जी की, दुर्गा जी की, गणेश जी की अनेक मूर्तियां थी।
इस मंदिर के आंगन में कुछ छोटे-छोटे और मंदिर भी है। मेरा निवेदन है आपसे इन मंदिरों को आप अनदेखा ना करें, क्योंकि इन मंदिरों में भी बहुत सुंदर मूर्तियां है।
मुख्य मंदिर के आगे ही नंदी का मंडप था नंदी बैल भी बहुत ही बड़ा और विशाल था और उसके ऊपर खूब प्यारी सी नक्काशी भी थी, मैंने इससे ज्यादा खूबसूरत नंदी अब तक नहीं देखा था सच में यह नंदी बैल की मूर्ति मन को भा जाती है।
नंदी बैल के आगे दो विशाल दीप स्तंभ हैं हम जिस द्वार से अंदर आए थे उसके अलावा एक और द्वार है लेकिन यह द्वार ऐसा लगता है कि ज्यादा उपयोग नहीं किया जाता।
क्योंकि हम लोग बहुत जल्द सुबह गए थे तो मंदिर बिल्कुल सुनसान था। हम 3 लोगो के अलावा समस्त मंदिर में एक भी व्यक्ति नहीं था।
हम लोगों ने यहां कुछ समय शांति में और एकांत मे व्यतीत किया , ऐसा माहौल रोज नहीं मिलता शायद इसीलिए आज आत्मिक तृप्ति का अहसास हो रहा था । कहते हैं ना कि मुसाफिर एक जगह रुक नहीं सकता तो अब हमारा समय हो गया था इस मंदिर को अलविदा कहने का और आगे के कुछ और छोटे मंदिर है जो हमें बुला रहे थे।
तो दोस्तों आप लोग मेरे ब्लॉग के अगले भाग के लिए बने रहिए और आइए देखते हैं कि सतारा में देखने के लिए और कौन – कौन से प्राचीन और इतिहासिक खजाने है।
मेरे ब्लॉग को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अगर आपको मेरे ब्लॉग पसंद आते हैं तो कृपया उन्हें अपने दोस्तों के साथ साझा करें, कृपया आप मेरी साइट को Subscribe करे और आपकी टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए ब्लॉग पर टिप्पणी ज़रूर करें।